Tuesday, February 11, 2014

मेरी जमीन...

फिर जमीन से जुड़ना चाहता हूँ
टूटी हुयी जड़ों को फिर से जोड़ना चाहता हूँ।
उड़ने की हसरत पूरी हुयी अब,
आसियान अब जमीन पर ही रखना चाहता हूँ।
चाही अनचाही ख्वाहिशें पूरी हुईं अब,
बिन ख्वाहिशों के जीना चाहता हूँ अब।
मिलता रहा और मिल के खोता रहा भीड़ में अब तक,
खुद से मिलना चाहता हूँ अब।
आसमान कुछ यूँ रास आया अब तक,
चाह के भी खुद के पास ना आया अब तक।
                 To be continued ...

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