Tuesday, February 11, 2014

मेरी जमीन...

फिर जमीन से जुड़ना चाहता हूँ
टूटी हुयी जड़ों को फिर से जोड़ना चाहता हूँ।
उड़ने की हसरत पूरी हुयी अब,
आसियान अब जमीन पर ही रखना चाहता हूँ।
चाही अनचाही ख्वाहिशें पूरी हुईं अब,
बिन ख्वाहिशों के जीना चाहता हूँ अब।
मिलता रहा और मिल के खोता रहा भीड़ में अब तक,
खुद से मिलना चाहता हूँ अब।
आसमान कुछ यूँ रास आया अब तक,
चाह के भी खुद के पास ना आया अब तक।
                 To be continued ...

Monday, January 27, 2014

शांत रातें...

दिल चाहता है कहीं खो जाऊं।
इन अँधेरी शांत रातों में सो जाऊं।
डूबती साँसों पर रखकर ख़्वाब सारे।
उस चिर शून्य में विलीन हो जाऊं।
इन परछाइयों से तोड़ कर रिश्ते सारे।
इन अँधेरी शांत गहराइयों में गुम हो जाऊं।
दिल चाहता है कहीं खो जाऊं।
       To be continued ...

Tuesday, January 14, 2014

अनुभव...

ये सारे मोड़ ये सारे जोड़ तोड़ इस जीवन तक ही हैं।
ये सारी शान ये आन बान इस जीवन तक ही हैं।
किसी का साथ उनकी बात और छूटी हुई कुछ याद इस जीवन तक ही हैं।
ये बाकी सांस और सांस में छुपी हर आस इस जीवन तक ही हैं।
समेटो सहेजो और जी लो ये जिन्दगी ...   To be continued ...

अस्तित्व...


अपने अस्तित्व से लड़ता मैं .
हां मैने स्वीकार किया कि मैं हूं .
खुद को करता सन्तुष्ट जीवन की इन अनसुलझी पहेलियों से .
हांथों से समेटने को बेचैन इन असीमित परछांइयों को .
To be continued ...